बहराइच :: जेल की दीवारों के पीछे चल रही है वसूली की हुकूमत

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🟣 कैदियों की दिनचर्या बनी शोषण की मिसाल।

सीताराम मद्धेशिया, कुशीनगर केसरी, बहराइच। राजकीय जेल की दीवारों के पीछे कैदियों की जिंदगी जितनी कठिन होनी चाहिए, उससे कहीं ज्यादा अमानवीय होती जा रही है। एक ओर जहाँ न्यायिक प्रक्रिया के तहत बंद कैदियों को सुधार की दिशा में मोड़ने का दावा किया जाता है, वहीं हकीकत यह है कि जेल के अंदर भ्रष्टाचार और वसूली का एक सुनियोजित तंत्र काम कर रहा है।
सूत्रों के अनुसार बंदी रक्षक (जेल स्टाफ) कैदियों से छोटे-छोटे कामों के लिए भी अवैध वसूली करते हैं। जैसे हीं कोई नया बंदी जेल में प्रवेश करता है, उसी दिन से उसे सेटिंग के नाम पर धनराशि देनी होती है — नहीं तो आम कैदियों के मुकाबले बदतर हालात में रहने को मजबूर किया जाता है।
कैदियों की दिनचर्या – सिर्फ समय की नहीं, पैसों की भी कैद….. सुबह की परेड, भोजन, दवाई, या परिवार से मिलने की अनुमति — हर कदम पर बंदी रक्षकों का अनकहा टैरिफ लागू होता है। नाश्ते में दूध या बेहतर खाना चाहिए? ₹ 100 प्रतिदिन। बीमारी में समय पर दवा चाहिए ? ₹ 200 की फीस पहले दो। परिवार से मुलाकात में ज़्यादा समय चाहिए ? अलग से भुगतान करना होगा।
वहीं जेल मैनुअल के नियमों को ताक पर रखकर एक सिस्टम बनाया गया है, जहाँ बिना रिश्वत के न तो इलाज मिलता है, न हीं सम्मानजनक व्यवहार। यहाँ तक कि कुछ कैदियों से जबरन साफ-सफाई या निजी काम भी करवाए जाते हैं। कई बार कैदियों ने उच्चाधिकारियों या न्यायालय में शिकायतें भी भेजीं, परंतु या तो जांच अधूरी रह गई या बंदियों को हीं मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा।
वहीं एक पूर्व बंदी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अगर पैसा नहीं है तो जेल में इंसान की कोई हैसियत नहीं। बंदी रक्षक जो कहे वहीं कानून है। क्या प्रशासन लेगा संज्ञान ?
मानवाधिकार संगठनों ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेने की मांग की है और स्वतंत्र जांच की अपील की है। यदि जल्द हीं इस अवैध तंत्र पर लगाम नहीं लगी, तो जेलें सुधारगृह नहीं बल्कि अत्याचार के अड्डे बनती चली जाएँगी।

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